यमुना नदी में मूर्ति विसर्जनपर लगे प्रतिबंध के चलते दिल्ली वालों के लिए मूर्ति विसर्जन के लिए वैकल्पिक ताल बनाने की मांग

राजधानी नागरिक कल्याण समिति ने यमुना नदी में मूर्ति विसर्जन
पर लगे प्रतिबंध के चलते दिल्ली वालों के लिए मूर्ति विसर्जन के लिए वैकल्पिक ताल बनाने की मांग की
है। उपराज्य विनय कुमार सक्सैना को ज्ञापन देकर डीएम नई दिल्ली और एनडीएमसी चेयरपर्सन से
अपील की है कि बिरला मंदिर और बिरला मंदिर की वाटिका के मध्य उत्तर-दक्षिण छोर तक पूर्व की
कुश्क नहर का बेकार पड़ा हिस्सा इसके लिए उपयुक्त स्थान है।

यमुना नदी में मूर्ति विसर्जन पर 50 हजार के जुर्माना जैसे प्रतिबंध पर बोलते हुए
समाज सेवी प्रीतम धारीवाल कहते हैं कि 2019 से प्रतिबंध
जारी है।

चिर काल से दिल्ली की आरडब्ल्यूए परिसरों, स्कूलों, गली मोहल्ले के छोटे बड़े सभी मंदिरों में
सरस्वती पूजा, गणेश पूजा, दुर्गा पूजा के अलावा छ्ट पूजा के लिए भी पानी से भरी नहर की जरूरत
होती है।


दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की गाइड लाइन के अनुसार नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के 2019 और
2021 में जारी आदेश के अनुसार गंगा और उसकी सहायक नदियों को प्रदूषित करने पर एनवायरमेंटल
प्रोटेक्शन एक्ट 1986 के सेक्शन -5 के अनुसार एक लाख रुपए का जुर्माना जेल या दोनों हो सकते हैं।
प्रतिबंध से ना तो मूर्ति पूजन पर प्रभाव पड़ता है ना ही मूर्ति विसर्जन पर। इसके लिए वैकल्पिक

व्यवस्था अभी तक नहीं की गई है यह चिंता का विषय है। गोल मार्किट में मूर्ति विसर्जन ताल के
संयोजक व समिति अध्यक्ष प्रीतम धारीवाल बताते हैं कि भारतीय सनातनी शास्त्रों के अनुसार सृष्टि के
आरंभ में जल था और अंत में भी जल ही बचता है जो स्वयं ब्रह्म स्वरूप है, जल के देवता गणपति जी
हैं और इसमें नारायण श्री हरि का निवास है।


देवी देवताओं की पूजा अनुष्ठान से मूर्ति में स्थापित करना और उन्हें जल प्रवाह कराके विदा करना
भारतीय शास्त्रगत परंपरा है। ऐसा इस लिए किया जाता बताया जाता है ताकि देवी देवताओं का अंश
मूर्ति से निकल कर जल में ब्रह्मलीन हो जाय। घरेलू बाल्टियों में, छोटे हौज बनाकर उनमें विसर्जन
करवाना धर्म संगत जान नहीं पड़ता। श्री धारीवाल कहते हैं फिलहाल हम बिरला मंदिर के सामने उद्यान
मार्ग पार्क में, डीएम नई दिल्ली और एनडीएमसी के सहयोग से इको फ्रेंडली विसर्जन ताल बना कर
मूर्तियों का विसर्जन करवाते हैं।

पूजा सामग्री के फूलों को खाद बनाने में इस्तेमाल करते हैं। यहां दिक्कत
ये है कि यहां किसी अन्य मंत्रालय का निर्माण कार्य चल रहा है। पहले के खुदे ताल को दोबारा यूज नहीं
किया जा सकता हर बार अलग से ताल खुदवाया जाता है वो भी जब निर्माण कार्य पूरा हो जाएगा तब
विकट समस्या खड़ी हो जायेगी।

चार साल में वैकल्पिक व्यवस्था नहीं हो पाई है, इस पर गंभीरता काम
करने की आवश्यकता है।

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