31 मार्च की रैली के बाद दिल्ली की कमान संभाल सकती हैं सुनीता केजरीवाल

सिर्फ औपचारिकता है बाकी है क्योंकि केजरीवाल भी है समझ रहे हैं कि
राष्ट्रपति शासन की तरफ जाना घाटे का सौदा हो सकता है क्योंकि विधानसभा चुनाव होने में बहुत
समय है और इस बीच कोई भी खेल केंद्र सरकार खेल सकती है।

माना जा रहा है कि अभी तक दिल्ली
को लेकर सभी विकल्पों पर विचार कर रहे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी लगने लगा है कि अब
जो भी फैसला करना है, उन्हें जल्द करना होगा।

क्योंकि केंद्र सरकार कहीं ना कहीं केंद्र सरकार यह तय
कर चुकी है कि सरकार को मौका मिलते ही विदा कर दिया जाए और उसके बाद उसकी रणनीति आपको
भारी भी पड़ सकती है।

इसलिए फिलहाल उन्हें जेल से सरकार चलाने की जिद छोड़ अपनी पत्नी को
मुख्यमंत्री बनाने में ही भलाई नजर आ रही है। बताया जाता है की मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पहले
सोच रहे थे कि यदि राष्ट्रपति शासन दिल्ली में लग जाता है तब हम लोग सड़कों पर उतरकर केंद्र

और राष्ट्रपति शासन होने के हालात में अगली केंद्र सरकार दिल्ली से विधानसभा समाप्त कर
महानगर परिषद या कोई और अन्य फैसला भी ले सकती है वही इतने लंबे समय तक सड़कों पर रहना
आसान नहीं है। केजरीवाल कैबिनेट के भरोसेमंद लोग भी उन्हें बता चुके कि अभी तो हमें जो दिल्ली में
लोकसभा चुनाव के लिए इतना लंबा समय मिला है

माहौल बनाना आसान नजर नहीं आ रहा है आसान
नजर नहीं आ रहा है इसलिए यह सोच लेना कि राष्ट्रपति शासन के बाद जब हमारे पास कोई सट्टा नहीं
रह जाएगी सड़कों पर संघर्ष करना आसान नहीं है

इसलिए अपना मुख्यमंत्री होना ही सही विकल्प रहेगा।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी पता है की सुनीता केजरीवाल मुख्यमंत्री रहेगी तो पार्टी में सब एक
जुट रहेंगे वरना किसी और के नाम पर गुटबाजी शुरू हो सकती है क्योंकि मुख्यमंत्री के दावेदारों में


अतिशी सौरव भारद्वाज गोपाल राय दुर्गेश पाठक के अलावा भी कई नाम चल रहे हैं इनमें से किसी को
भी बना दिया तो पर्दे के पीछे से बाकी सब टांग खींचे में लग जाएंगे इसलिए सुनीता केजरीवाल को
मुख्यमंत्री बनाना सही विकल्प होगा।

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