सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को महत्वपूर्ण फैसला देते हुए चंडीगढ़ का
महापौर चुनाव में आम आदमी पार्ट (आप) के पार्षद कुलदीप कुमार को विजेता घोषित कर दिया। शीर्ष
अदालत ने 30 जनवरी को पीठासीन अधिकारी द्वारा घोषित महापौर चुनाव परिणाम को रद्द करते हुए
यह फैसला दिया है,
जिसमें 8 मतों को अवैध घोाषित करते हुए भाजपा उम्मीदवार मनोज कुमार सोनकर
को विजयी घोषित कर दिया था। जिन वोटों को पीठासीन अधिकारी ने अवैध घोषित किया था, वे सभी
आप उम्मीदवार कुलदीप कुमार के पक्ष में थे।
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान का अनुच्छेद 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों को इस्तेमाल किया है ताकि
मामले में पूर्ण न्याय किया जा सके। अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट अपनी शक्ति का इस्तेमाल तब
करती है जब कानून मामले में कोई उपाय प्रदान नहीं कर सकता है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़,
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि ‘तथ्यों से साफ है कि पीठासीन
अधिकारी अनिल मसीह ने जानबूझकर 8 मतपत्रों को विकृत करके अवैध घोषित किया था, भाजपा
उम्मीदवार को महापौर चुनाव में विजयी घोषित किया जा सके।
पीठ ने कहा है कि जिन जिन 8 वोटों को को पीठासीन अधिकारी मसीह ने अवैध घोषित किया था, आप
उम्मीदवार के पक्ष में है। शीर्ष अदालत ने कहा कि मतपत्रों की भौतिक जांच करने के बाद हमने पाया
कि वे किसी भी तरह से विकृत नहीं थे।
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि पीठासीन अधिकारी द्वारा
अवैध घोषित किए गए 8 मतपत्रों को पूरी तरह से वैध हैं क्योंकि उसमें पहले से किसी तरह का कोई
विकृति नहीं थी। उन्होंने कहा कि ऐसे में इन 8 मतों के साथ याचिकाकर्ता कुलदीप कुमार के पक्ष में
कुल 20 मत हो गए,
लिहाजा उन्हें महापौर चुनाव में विजयी घोषित किया जाता है। पीठासीन अधिकारी
द्वारा पहले जारी परिणाम में कुमार को 12 वोट मिले थे और उनके पक्ष के 8 मतों को अवैध घोषित
कर दिया गया था। शीर्ष अदालत ने आप उम्मीदवार कुलदीप कुमार की याचिका पर यह फैसला दिया है।
पीठासीन अधिकारी अनिल मसीह के खिलाफ कार्रवाई
सुप्रीम कोर्ट ने चंडीगढ़ महापौर चुनाव में पीठासीन अधिकारी अनिल मसीह को भी कदाचार का दोषी
पाया है। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि ‘पीठासीन अधिकारी ने याचिकाकर्ता के पक्ष में डाले गए 8
मतपत्रों को जानबूझकर विकृत किया है ताकि भाजपा उम्मीदवार को महापौर निर्वाचित घोषित किया जा
सके।
उन्होंने कहा कि सोमवार को पीठासीन अधिकारी मसीह ने इस अदालत के समक्ष भी गलत बयानी
की। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि पीठासीन अधिकारी ने सोमवार को बताया था कि 8 मतपत्रों पर
इसलिए क्रॉस का निशान लगाया था क्योंकि वे पहले से विरूपित थे। उन्होंने कहा कि मतपत्रों की भौतिक
जांच से स्पष्ट है कि कोई भी मतपत्र विरूपित नहीं हुआ था।
इसके अलावा, शीर्ष अदालत ने कहा है कि पीठासीन अधिकारी के आचरण की दो स्तरों पर निंदा की
जानी चाहिए। सबसे पहले, उन्होंने महापौर चुनाव के प्रक्रिया को गैरकानूनी रूप से बदल दिया है। दूसरे,
19 फरवरी को इस अदालत के समक्ष गंभीर बयान देते हुए गलत बयान दिया, इसलिए इस जवाबदेह
ठहराया जाना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने इसे गंभीरता से लेते हुए पीठासीन अधिकारी अनिल मसीह के
खिलाफ अदालत के समक्ष गलत बयान करने के लिए अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा
340 के तहत आपराधिक कार्यवाही भी शुरू की। पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार (न्यायिक) को अनिल
मसीह के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 340 के तहत कारण बताओ नोटिस जारी करने के लिए कहा है
कि क्यों न उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू की जाए।
नये सिरे से चुनाव कराने की मांग को ठुकराया
सुप्रीम कोर्ट ने चंडीगढ़ महापौर का नये सिरे से चुनाव कराने की मांग को ठुकराते हुए कहा कि ‘पूरे
चुनाव को रद्द करना अनुचित है क्योंकि चुनाव प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं हुई है बल्कि मतगणना
प्रक्रिया के दौरान पीठासीन अधिकारी का कदाचार ही एकमात्र गडबड़ी है। यह टिप्पणी करते हुए शीर्ष
अदालत ने कहा कि ऐसे में हमारा मानना है कि संपूर्ण चुनाव प्रक्रिया को रद्द करने से लोकतांत्रिक
सिद्धांतों का विनाश होगा
जो कि एक अधिकारी के आचरण के चलते कारण हुआ है। इसे पहले, पीठ को
बताया गया कि 30 जनवरी को महापौर चुनाव का विजयी घोषित किए गए भाजपा उम्मीदवार मनोज
सोनकर ने पहले इस्तीफा दे दिया। यह दलील देते हुए मामले में प्रतिवादियों ने नये सिरे से महापौर पद
का चुनाव कराने की मांग की।
शीर्ष अदालत को बताया गया था कि चूंकि याचिकाकर्ता ने भी परिणाम
रद्द करके नये सिरे से चुनाव कराने की मांग की है, इसलिए नये सिरे से ही चुनाव कराने के आदेश
दिए जाएं।