तुर्कमान गेट की दर्दनाक कहानी: इमरजेंसी Emergency के वो काले दिन
राजधानी दिल्ली का तुर्कमान गेट और उसका इतिहास आज भी कई लोगों के ज़ेहन में ताज़ा है। आज से ठीक 50 साल पहले, 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा देश भर में Emergency (आपातकाल) की घोषणा की गई थी।
इस आपातकाल के दौरान हुए अत्याचार, गोलीबारी, बुलडोजर की कार्रवाई और ज़बरदस्ती नसबंदी के काले अध्याय आज भी तुर्कमान गेट के बड़े-बुज़ुर्गों की आँखों में जीवित हैं। जब भी वे उस दौर को याद करते हैं, उनकी आँखें नम हो जाती हैं।

25 जून 1975: जब तुर्कमान गेट की गलियों में छा गई थी दहशत
दिल्ली के तुर्कमान गेट की संकरी गलियों में आज भी इमरजेंसी Emergency की कड़वी यादें ज़िंदा हैं। 25 जून 1975 को लगाए गए आपातकाल ने इस इलाके के हज़ारों परिवारों की ज़िंदगी पल भर में बदल दी।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा इस ऐतिहासिक फ़ैसले के बाद, तुर्कमान गेट का इलाका ज़बरन नसबंदी अभियान, घरों के अचानक ध्वस्तीकरण और परिवारों के बिछड़ने की पीड़ा का गवाह बना। उस समय के अत्याचार और प्रताड़ना की कहानियाँ आज भी बुजुर्गों की आँखों में साफ़ दिखाई देती हैं। उनका दर्द इस बात का प्रमाण है कि 50 साल बाद भी वो ज़ख्म ताज़ा हैं।
तुर्कमान गेट का दर्दनाक इतिहास और संजय गांधी की भूमिका
तुर्कमान गेट की घटना आपातकाल के सबसे काले अध्यायों में से एक है। अब्दुल हमीद जैसे कई स्थानीय निवासी आज भी उस दिन को याद करते हैं जब उनके मोहल्ले के लोग अपने घरों को बचाने की कोशिश कर रहे थे और पुलिस ने फ़ायरिंग कर दी, जिसमें कई लोग घायल हो गए। यह केवल घरों का उजड़ना नहीं था, बल्कि पूरी ज़िंदगी का बिखरना था।
जो लोग बेघर हुए, उन्हें नंद नगरी जैसी जगहों पर बसाया गया। उस समय नंद नगरी केवल एक खुला मैदान था, जहाँ न पानी था, न शौचालय, न कोई मकान। महिलाएँ झुंड में बाहर जाती थीं, क्योंकि डर हर वक़्त साथ चलता था।
इसके साथ ही तुर्कमान गेट नसबंदी अभियान की भी चपेट में आ गया, जिसे उस समय संजय गांधी की अगुवाई में चलाया गया था। यह अभियान बेहद क्रूरतापूर्वक चलाया गया, जिसमें लोगों को जबरन नसबंदी कराने के लिए मजबूर किया गया, जिससे समाज में गहरा आघात लगा।

आपातकाल Emergency घोषणा का इतिहास और कारण
भारत में 25 जून 1975 को आपातकाल Emergency की घोषणा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर राष्ट्रपति फ़खरुद्दीन अली अहमद ने की थी। यह घोषणा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत की गई थी, जिसमें आंतरिक अशांति के आधार पर आपातकाल लगाने का प्रावधान है।
आपातकाल Emergency की घोषणा के कई कारण बताए जाते हैं। इंदिरा गांधी सरकार ने कांग्रेस शासन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए विपक्षी दलों द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन के कारण देश की कानून और व्यवस्था की स्थिति खराब होने का हवाला दिया था। हालांकि, आलोचकों का मानना है कि यह इंदिरा गांधी की सत्ता पर पकड़ बनाए रखने और विपक्षी आवाज़ों को दबाने का एक प्रयास था।आज भी 50 साल पहले की उन तस्वीरों को देखते हुए युवा पीढ़ी कहीं न कहीं थम सी जाती है।
उन्हें यह समझना मुश्किल होता है कि वह कैसा मंज़र रहा होगा जब लोगों को जबरदस्ती नसबंदी कराई जा रही थी, केवल यह कहकर कि इमरजेंसी लागू की गई है। एक प्रधानमंत्री, जिसे देश का राजा माना जाता है और जो अपनी प्रजा को खुश रखने के लिए हर संभव प्रयास करता है, उसी की ओर से प्रजा को प्रताड़ित किया जा रहा था।
इस तरह इमरजेंसी Emergency लागू करवा कर लोगों को प्रताड़ित करना आज भी उतना ही दुखी करता है, जितना 50 साल पहले करता था।
यह घटना हमें याद दिलाती है कि लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों की रक्षा कितनी महत्वपूर्ण है। तुर्कमान गेट का इतिहास आपातकाल के दौरान हुए अत्याचारों का एक जीवंत प्रमाण है, जो भविष्य की पीढ़ियों को ऐसे समय से बचने के लिए प्रेरित करता रहेगा।
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