The dalai lama दलाई लामा के उत्तराधिकारी पर भारत और चीन के बीच बढ़ा टकराव: एक नया कूटनीतिक मोड़
नई दिल्ली, 5 जुलाई, 2025 –
The dalai lama दलाई लामा के उत्तराधिकारी के मुद्दे पर भारत और चीन के बीच एक नया कूटनीतिक टकराव उभर कर सामने आया है। भारत सरकार ने स्पष्ट रूप से घोषणा की है कि 14वें The dalai lama दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चुनाव करने का अधिकार केवल The dalai lama दलाई लामा या उनके द्वारा स्थापित गादेन फोड्रंग ट्रस्ट (Gaden Phodrang Trust) को है।
यह बयान चीन के उस दावे को सीधे तौर पर खारिज करता है, जिसमें वह The dalai lama दलाई लामा के उत्तराधिकारी को चुनने के अधिकार पर जोर देता रहा है।

The dalai lama दलाई लामा ने अपने 90वें जन्मदिन से ठीक पहले उत्तराधिकार से संबंधित सवालों पर अपनी स्थिति स्पष्ट की। उन्होंने कहा कि The dalai lama “दलाई लामा की संस्था जारी रहेगी” और उनके “असली उत्तराधिकारी की खोज उनकी मृत्यु के बाद की जाएगी।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि ‘एम्नेशन’ (Emanation) की परंपरा नहीं अपनाई जाएगी, जिसमें The dalai lama दलाई लामा अपने जीवित रहते ही किसी वारिस को चुनते हैं।
यह एक महत्वपूर्ण घोषणा है क्योंकि यह चीन के संभावित हस्तक्षेप को रोकने का एक प्रयास है, जो तिब्बती बौद्ध धर्म के मामलों में अपनी भूमिका स्थापित करना चाहता है। The dalai lama दलाई लामा ने उत्तराधिकारी चुनने की पूरी प्रक्रिया की जिम्मेदारी गादेन फोड्रंग ट्रस्ट को सौंपी है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि चयन प्रक्रिया उनकी इच्छा और तिब्बती बौद्ध परंपरा के अनुसार हो।
भारत सरकार के इस रुख की पुष्टि केंद्रीय राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने भी की। उन्होंने कहा कि “किसी बाहरी एजेंसी के पास उत्तराधिकारी चुनने का अधिकार नहीं है” और “सिर्फ The dalai lama दलाई लामा या उनका आधिकारिक ट्रस्ट ही यह कार्य कर सकता है।” यह बयान न केवल एक कूटनीतिक संदेश है, बल्कि यह तिब्बती बौद्ध धर्म की स्वायत्तता और भारत के तिब्बती समुदाय के प्रति उसके समर्थन को भी दर्शाता है।
भारत और चीन के बीच टकराव की स्थिति
The dalai lama दलाई लामा के उत्तराधिकार का मुद्दा दशकों से भारत और चीन के बीच एक संवेदनशील और जटिल विषय रहा है। चीन The dalai lama दलाई लामा को एक अलगाववादी मानता है और तिब्बती बौद्ध धर्म पर अपना नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास कर रहा है, जिसमें अगले दलाई लामा का चयन भी शामिल है।
वहीं, भारत, जो 1959 से The dalai lama दलाई लामा और हजारों तिब्बती शरणार्थियों का घर रहा है, तिब्बती संस्कृति और धर्म की स्वतंत्रता का समर्थन करता है। इस मुद्दे पर भारत का स्पष्ट रुख दोनों देशों के बीच संबंधों में तनाव को और बढ़ा सकता है, क्योंकि चीन इसे अपनी आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप के रूप में देख सकता है। The dalai lama दलाई लामा कहीं न कहीं दोनों देशों के बीच एक ऐसे ‘मोहरे’ के रूप में साबित हो रहे हैं जो इस टकराव की स्थिति को और अधिक बढ़ा रहा है।

14वें The dalai lama दलाई लामा और धर्मशाला का महत्व
14वें The dalai lama दलाई लामा ने 1959 में तिब्बत से निर्वासित होने के बाद से भारत के हिमाचल प्रदेश में स्थित धर्मशाला को अपना केंद्र बना रखा है। यह स्थान तिब्बती बौद्ध अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र बन गया है, जो या तो तिब्बत से आए हैं या भारत में पैदा हुए हैं। धर्मशाला तिब्बती निर्वासित सरकार का भी मुख्यालय है, जिससे यह मुद्दा और भी अधिक राजनीतिक रूप से संवेदनशील हो जाता है।
The dalai lama दलाई लामा का 90वां जन्मदिन 6 जुलाई को है, और इस अवसर पर दुनिया भर से विभिन्न धर्मों और संप्रदायों के प्रतिनिधि, मशहूर हस्तियां और उनके अनुयायी जुटेंगे। दुनियाभर में मौजूद तिब्बती बौद्ध धर्म को मानने वाले भी इस आयोजन और The dalai lama दलाई लामा के उत्तराधिकार से संबंधित किसी भी बयान पर बारीकी से नजर रखेंगे।
इस स्थिति से यह स्पष्ट है कि The dalai lama दलाई लामा के उत्तराधिकार का मुद्दा केवल एक धार्मिक मसला नहीं है, बल्कि यह भारत-चीन संबंधों और क्षेत्रीय भू-राजनीति को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक बिंदु भी है। भारत का दृढ़ रुख तिब्बती पहचान और स्वतंत्रता के लिए एक मजबूत संदेश है, जबकि चीन इसे अपनी संप्रभुता के लिए चुनौती के रूप में देखेगा। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह टकराव दोनों देशों के संबंधों को किस दिशा में ले जाता है।
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