बेटी घायल, पिता लाचार: 5 महीने तक पुलिस POLICE ने लगवाए थाने के चक्कर।
हल्द्वानी, उत्तराखंड:
उत्तराखंड के हल्द्वानी से सामने आया एक चौंकाने वाला मामला POLICE पुलिस प्रशासन की कार्यशैली पर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। न्याय और सुरक्षा के लिए जिस विभाग पर आम जनता भरोसा करती है,
उसी ने एक घायल बेटी के पिता को पांच महीने तक थाने के चक्कर लगवाकर और भी गहरे जख्म दिए हैं।
यह मामला न केवल एक परिवार की दर्दनाक आपबीती है, बल्कि सिस्टम की खामियों और संवेदनहीनता का भी जीता-जागता उदाहरण है।
दर्दनाक हादसा और पुलिस Police की अनदेखी:
यह घटना हल्द्वानी निवासी एक व्यक्ति से जुड़ी है, जिनकी बेटी एक सड़क हादसे में बुरी तरह घायल हो गई थी। हादसा इतना भीषण था कि बेटी को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा, जहां उसकी जान बचाने के लिए डॉक्टरों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी।
परिवार का आरोप है कि यह कोई सामान्य सड़क हादसा नहीं था, बल्कि जानबूझकर किया गया हमला था, जिसका मकसद उनकी बेटी को नुकसान पहुंचाना था। इस गंभीर आरोप के साथ, पीड़ित परिवार ने तुरंत पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, न्याय की उम्मीद में।
लेकिन, उनकी उम्मीदें तब टूटनी शुरू हो गईं जब पुलिस Police ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया। परिजनों का कहना है कि पुलिस Police ने एफआईआर (FIR) दर्ज करने में भी टालमटोल की।
एक बेटी के जीवन और सुरक्षा से जुड़े इतने संवेदनशील मामले में पुलिस Police की यह शुरुआती निष्क्रियता ही उनके लिए पहला बड़ा झटका साबित हुई।
जबकि यह उनका कर्तव्य था कि वे तुरंत शिकायत दर्ज कर मामले की गंभीरता को समझें और तत्काल कार्रवाई शुरू करें।
पांच महीने तक न्याय की तलाश में भटकते पिता:
हादसे के बाद अगले पांच महीने तक, घायल बेटी के पिता को न्याय की आस में लगातार थाना और चौकी के चक्कर लगाने पड़े। उनका हर दिन पुलिस अधिकारियों से गुहार लगाने और अपने दर्द को समझाने में बीतता रहा।
हर बार उन्हें केवल “तारीख पर तारीख” दी जाती रही, और आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। पुलिस Police के इस उदासीन रवैये ने पीड़ित परिवार को मानसिक रूप से बुरी तरह तोड़ दिया।
एक तरफ बेटी अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रही थी, वहीं दूसरी तरफ पिता न्याय के लिए दर-दर भटक रहे थे, लेकिन उन्हें सिर्फ निराशा ही हाथ लगी।
यह स्थिति किसी भी आम नागरिक के लिए असहनीय होती है। जब कोई अपने बच्चे की सुरक्षा और न्याय के लिए पुलिस Police पर निर्भर करता है और उसे ऐसी उदासीनता का सामना करना पड़ता है, तो यह कानून-व्यवस्था पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।
सवाल उठता है कि यदि एक घायल बच्ची के लिए उसके पिता को इतनी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, तो आम जनता किस पर भरोसा करेगी?
उत्तराखंड पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर सवाल:
इस पूरे मामले ने उत्तराखंड पुलिस Police की निष्क्रियता, संवेदनहीनता और अक्षमता को उजागर कर दिया है। यह एक ऐसी घटना है जो पुलिस Police के “मित्र पुलिस” के नारे के विपरीत जाती है।
पुलिस Police का मुख्य कार्य नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना, अपराधों को रोकना और अपराधियों को कानून के कटघरे में लाना है।
लेकिन इस मामले में, पुलिस Police ने न केवल अपने प्राथमिक कर्तव्यों में लापरवाही बरती, बल्कि एक पीड़ित परिवार की पीड़ा को भी अनदेखा किया। यह घटना दर्शाती है कि कहीं न कहीं सिस्टम में गंभीर खामियां हैं, जहां आम नागरिकों की शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया जाता।
डीएम और एसएसपी से न्याय की गुहार, आंदोलन की चेतावनी:
Police पुलिस प्रशासन से निराशा मिलने के बाद, अब पीड़ित परिवार ने न्याय के लिए अंतिम उम्मीद के तौर पर डीएम (जिलाधिकारी) और एसएसपी (वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक) से गुहार लगाई है।
उन्होंने मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है, ताकि दोषियों को जल्द से जल्द गिरफ्तार किया जा सके और उन्हें सजा मिल सके। परिवार ने यह चेतावनी भी दी है कि यदि उन्हें जल्द ही न्याय नहीं मिला, तो वे आंदोलन पर उतरने के लिए मजबूर होंगे।
यह आंदोलन केवल एक परिवार के लिए न्याय की लड़ाई नहीं होगी, बल्कि उन सभी लोगों के लिए एक आवाज होगी जिन्होंने सिस्टम की लापरवाही का खामियाजा भुगता है।
यह मामला न केवल एक परिवार की अथाह पीड़ा का प्रतीक है, बल्कि हमारे कानूनी और प्रशासनिक सिस्टम की खामियों का एक कड़वा आईना भी है।
यह अधिकारियों के लिए एक वेक-अप कॉल है कि वे अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से लें और यह सुनिश्चित करें कि कोई भी नागरिक न्याय के लिए दर-दर भटकने को मजबूर न हो।
पुलिस प्रशासन को अपनी कार्यशैली में पारदर्शिता और संवेदनशीलता लानी होगी ताकि जनता का विश्वास बहाल हो सके।
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